This poem was written on august in a prison of Chandigarh
जीवन विफलताओं से भरा है,सफलताएँ जब कभी आईं निकट,दूर ठेला है उन्हें निज मार्ग से ।तो क्या वह मूर्खता थी ?नहीं ।सफलता और विफलता कीपरिभाषाएँ भिन्न हैं मेरी !इतिहास से पूछो कि वर्षों पूर्वबन नहीं सकता प्रधानमन्त्री क्या ?किन्तु मुझ क्रान्ति-शोधक के लिएकुछ अन्य ही पथ मान्य थे, उद्दिष्ट थे,पथ त्याग के, सेवा के, निर्माण के,पथ-संघर्ष के, सम्पूर्ण-क्रान्ति के ।जग जिन्हें कहता विफलताथीं शोध की वे मंज़िलें ।मंजिलें वे अनगिनत हैं,गन्तव्य भी अति दूर है,रुकना नहीं मुझको कहींअवरुद्ध जितना मार्ग हो ।निज कामना कुछ है नहींसब है समर्पित ईश को ।तो, विफलताओं पर तुष्ट हूँ अपनी,और यह विफल जीवनशत–शत धन्य होगा,यदि समानधर्मा प्रिय तरुणों काकण्टकाकीर्ण मार्गयह कुछ सुगम बन जावे !
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